बदली के बाद खिल पड़ी धूप
बेतवा किनारे
सलोनी सर्दी का निखरा है रूप
बेतवा किनारे
रग-रग में धड़कन, वाणी है चूप
बेतवा किनारे
सब कुछ भरा-भरा, रंक है भूप
बेतवा किनारे
बदली के बाद खिल पड़ी धूप
बेतवा किनारे
(1979 में रचित)
बदली के बाद खिल पड़ी धूप
बेतवा किनारे
सलोनी सर्दी का निखरा है रूप
बेतवा किनारे
रग-रग में धड़कन, वाणी है चूप
बेतवा किनारे
सब कुछ भरा-भरा, रंक है भूप
बेतवा किनारे
बदली के बाद खिल पड़ी धूप
बेतवा किनारे
(1979 में रचित)