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बेमिन्नते-ख़िज़्रे-राह रहना / नासिर काज़मी

बेमिन्नते-ख़िज़्रे-राह रहना
मंजूर हमें तबाह रहना

यारों को नसीब सरफ़राज़ी
मुझको तेरी गर्दे-राह रहना

दिल एक अजीब घर है प्यारे
इस घर में भी गाह गाह रहना

गर यूँ ही रहे दिलों की रंजिश
मुश्किल है बहम निबाह रहना

भर आयेगी आंख भी किसी दिन
ख़ाली नहीं सर्फ़-आह रहना

मैं हाथ नहीं उसे लगाया
ऐ बेगुनही गवाह रहना

'नासिर' ये वफ़ा नहीं जुनूँ है
अपना भी न ख़ैरख्वाह रहना।