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बेली डान्‍सर / दिनेश कुमार शुक्ल

बमाको शहर के
खण्डहरों में मेरा जन्म हुआ
माली के प्राचीन परास्त राजकुल में ...
माँ के सूखते स्तनों से
मिला मुझे मज्जा का स्वाद,
जब गोद में ही थी मैं
सुनी मैंने मृत्यु की पहली पदचाप
क्षयग्रस्त माँ की मंद होती धड़कन में,
गोद में ही लग गई लत मुझे
जिन्दा बने रहने की

सूखी हुई घास, कटीली नागफनी और
ठुर्राई झाड़ियों की मिट्टी ने पाला पोसा मुझे
सीखा मैंने जहरीले साँपों को भून कर खाना
चट्टानों से पाया मैंने नमक
सहारा की रेत से बनी मेरी हड्डियाँ
ओ हड्डी-की-खाद के सौदागर
तुम मुझे क्यों घूरते हो इस तरह!

दास प्रथा का तो अन्त हुए
बीत गये कितने साल
कहते हैं अफ्रीका भी
अब बिल्कुल आज़ाद है
अब मुझे भी गिनती आती है
ओ पेट्रोल के सौदागर
तुम्हारी आँखों में क्यों इतनी आग है
कि हमारी दुनिया ही ख़ाक हुई जाती है
मुझे अपनी सिगरेट के धुएँ में डुबाते हुए
मेरे भाइयों से तुम्हें क्यों नहीं लगता डर !

कोई हिरनी क्या दौड़ेगी मुझसे तेज
चने-सा चबा सकती हूँ बंदूक के छर्रे
तड़ित् को तो रोज चकित करती हूँ
अपने चपल नृत्य से
दरअस्ल तुम्हें चीर सकती हूँ मैं शेरनी की तरह
फिर भी तुम
अपनी जन्मांध आँखों से
मुझे निर्वस्त्र किये जाते हो
क्या तुम्हें अपनी जिन्दगी प्यारी नहीं
ओ सभ्यताओं के सौदागर ।

कैसे, कैसे हुए तुम इतने निद्र्वन्द्व !
एक के बाद एक सीमा लाँघते
पृथ्वी और स्त्रियों को
करते हुए पयर्टित पद्दलित
देखते हुए मेरा निर्वस्त्र नाच
पेट के लिए पेट-का-नाच
मेरी देह की थिरकती माँसपेशियाँ
मछलियाँ हैं
जिनकी हलक में धँस गया लोहे का काँटा,
खून के कीचड़ से
भर गया है रंगमंच लथपथ
जुगुप्सा के इतने व्यंजनों के बीच
तुम्हारे सिवा और कौन हो सकता था इतना लोलुप
ओ लोहे बारूद और मृत्यु के सौदागर !
                                        

  • अफ्रीकी देशों - मिश्र, सेनेगल और मोरक्को की यात्राओं (वर्ष 2005 और 2006) के समय लिखी गयी कविताएँ।