Last modified on 6 मार्च 2014, at 12:13

बैरागी भैरव / बुद्धिनाथ मिश्र

बहकावे में रह मत हारिल
एक बात तू गाँठ बाँध ले
केवल तू ईश्वर है
बाकी सब नश्वर है ।

ये तेरी इन्द्रियाँ, दृश्य,
सुख-दुख के परदे
उठते-गिरते सदा रहेंगे
तेरे आगे
मुक्त साँड़ बनने से पहले
लाल लोह-मुद्रा से
वृष जाएँगे दागे

भटकावे में रह मत हारिल
पकड़े रह अपनी लकड़ी को
यही बताएगी अब तेरी
दिशा किधर है ।

यह जो तू है, क्या वैसा ही है
जैसा तू बचपन में था ?
कहाँ गया मदमाता यौवन
जो कस्तूरी की ख़ुशबू था ।

दुनिया चलती हुई ट्रेन है
जिसमें बैठा देख रहा तू
नगर-डगर, सागर, गिरि कानन
छूट रहे हैं एक-एक कर ।

कोई फ़र्क नहीं तेरे
इस ब्लैक बॉक्स में
भरा हुआ पत्थर है
या हीरा-कंचन है ।
जितना तू उपयोग कर रहा
मोहावृत जग में निर्मम हो
उतना ही बस तेरा धन है।

एक साँस, बस एक साँस ही
तू ख़रीद ले
वसुधा का सारा वैभव
बदले में देकर !