Last modified on 11 नवम्बर 2009, at 22:01

बैरिनि बाँसुरी फेरि बजी / भारतेंदु हरिश्चंद्र

बैरिनि बाँसुरी फेरि बजी।
सुनत श्रवन मन थकित भयो अरु मति गति जाति भजी।
सात सुरन अरु तीन ग्राम सों पिय के हाथ सजी।
’हरीचंद’ औरहु सुधि मोही जबही अधर तजी॥