जब भी बरसता है पानी
पोखर में लौट आता है मौसम
उसकी बूढ़ी हड्डियाँ
खुशी से काँपने लगती हैं।
वह जानता है अच्छी तरह
अगली सुबह होगी उसके सामने
नर्म घास
हाँक दिया जाएगा वह खेतों की ओर
बार-बार हाँकने का दूसरा मतलब
बैल है।
जब भी बदलता है मौसम
वह उगाता
करोड़ों रोटी के दरख़्त
फिर भी लोग देते दुहाई
पोखर के ग्राम-देवता की
बूढ़े बैल की मशक्कत लौट आती
खुरों के पास हर बार
मौसम बदलने पर।
मेरे कुछ दोस्तों के लिए
रोटी के दरख़्त उगाने वाला वह जानवर
एक खतरनाक मौत है।
बहुत जल्दी पहचान लेते हैं लोग
उसके सींगों का भय
वैसे भी पहचान करवाने का
खूबसूरत करिश्मा है भय।
गाँव से शहर तक खाँसता है वह
बूढ़ा पंजर
खेत जोतने से लेकर
ठेले खींचने तक की मशक्कत
कभी बहस का मुद्दा नहीं बनती
वैसे हर मौसम में नलवाड़ी<ref>पशुओं का मेला</ref>
उसके बिकने की दास्तां है।
बैल खूँटे से बँधा
रोटी का नक्शा है
फिर-फिर पलोसने से
थरथराता है बार-बार।
शायद तुम नहीं जानते,
यह जानवर
कितनी साजिशों में शामिल है गाँव में
साल में
खड़ा होता है कितनी बार
कचहरी के कठघरे में
रोटी के दरख़्त उगाने वाला वह जानवर
होता है कितनी बार नीलाम
रोटी के लिए तय करती हैं कितनी बार
झूठी शहादतें उसका भविष्य
मेरे कुछ दोस्त इसे नहीं जानते।
मेरे दोस्त नहीं जानते
बैल किस तरह बनता है जूता
लगातार ज़मीन से लड़कर
घिसते हुए
टूटते हुए
जीने का नाम
जूता है
बैल का असली रूप वही है
जूता बैल की मशक्कत की
अन्तिम इच्छा है।
वैसे आसान काम नहीं
उस जानवर को
कविता के खूँटे में बाँधना
जो हर बार
नये नाम से लाँघता है नया दरवाजा।
जितनी बार झुकता है वह
पोखर के पानी पर
महसूस करता है एक पूरा दरख़्त
फटी हुई गर्दन पर।
फटी हुई गर्दन की तकलीफ़
फैल जाती है पोखर में
जिसे पीकर
लौट आता है वह हर बार
मौसम बदलने पर।
कुछ दिनों से
जीभ की लार में उतरा
उसका गुस्सा
खाने लगा है रोटी के दरख़्त
इसीलिए हो गया है ज़रूरी
उसके बारे में बात करना
मेरे कुछ दोस्त इसे नहीं जानते।
लिखे हैं मेरे कुछ दोस्तों ने
दर्जनों निबन्ध
उस जानवर के बारे में
आया है जिक्र जिसमें कई बार
उसकी टाँगों का
उसके सींगों का
उनके लिए
रँभाने वाली मशीन है बैल
मैं जिसे
मार खाया चमड़ा कहता हूँ
जिसकी पूरी ताकत
करवा दी थी खत्म
हल जोतने से पहले रामसिंह ने।
नहीं फैला सकता देर तक
झूठा डर
मार खाया हुआ चमड़ा
दोस्तो,
चाहे झूठा हो या सच्चा
डर-तो-डर है।
जब भी रुकता है पानी
बिदक उठते हैं अचानक
जानवरों के रेवड़
घबरा जाता है रामसिंह का पूरा परिवार
फूल उठता है
मरा हुआ चमड़ा
लगता है रँभाने
रामसिंह के जूतों में
बैलों का रेवड़।