चारों ओर
बिखरी विरक्ति।
रेत-कणों के से अ-मिल एहसास
तुम्हें सालते हैं।
झबरीले पेड़ों का
कंकरीला होना
दुखता है तुम्हें।
कितनी ही देर तक
बस में बैठे हुए
सहयात्री से लेकर
विश्व के गहरे-गहरे दर्शन
छान डालते हो तुम
और इनसे-मिलती है तुम्हें
एक कविता
....फिर तुम्हारे चारों ओर
क्या हो रहा है
तुम्हें क्या लेना ?
(तुम और तुम्हारी कविता)