परिपक्व
कड़वे अनुभवों ने ही
बनाया है मुझे!
आदमी की क्षुद्रताओं ने
सही जीना
सिखाया है मुझे!
विश्वासघातों ने
मोह से कर मुक्त
भेद जीवन का
बताया है मुझे!
ज़माने ने सताया जब
बेइंतिहा,
काव्य में पीड़ा
तभी तो गा सका,
मर्माहत हुआ
अपने-परायों से
तभी तो मर्म
जीवन का / जगत का
पा सका!