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बोध / संतोष श्रीवास्तव

ये कौन है
जो मुझे याद कर रहा है
ये कैसी बेचैनी
ये कैसी तड़प
जो मुझे बूंद बूंद
पिघला रही है
न जाने किस अथाह में
बूंदों का लावा
बहा जा रहा है

मेरा अस्तित्व किन्हीं
अनाम बंधनों की
भेंट चढ़ रहा है
रुह कांप जाती है
मेरी शक्ति मेरी ऊर्जा
तिरोहित होती-सी लगती है

ये पितृपक्ष के दिन
जीवित आत्मा को
मृत रिश्तो में
घसीटते ये दिन
ये श्राद्ध
कहीं मेरे जन्मों की
पूर्व बन्धनों की
छेड़छाड़ तो नहीं