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बोनजई / सुधा उपाध्याय

तुमने आँगन से खोदकर
मुझे लगा दिया सुंदर गमले में
फिर सजा लिया घर के ड्राइंग रूम में
हर आने जाने वाला बड़ी हसरत से देखता है
और धीरे-धीरे मैं बोनज़ई में तब्दील हो गई
मौसम ने करवट ली
मुझमें लगे फल फूल ने तुम्हें फिर डराया
अबकी तुमने उखाड़ फेंका घूरे पर
आओ देखकर जाओ
यहां मेरी जड़ें और फैल गईं हैं।