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बोलति न काहे ! एरी, पूछे बिन बोलोँ कहा / पद्माकर


बोलति न काहे ! एरी, पूछे बिन बोलोँ कहा ,
पूछती हौँ काहे भई स्वेद अधिकाई है ।
कहैँ पदमाकर सुमारग के गए आए ,
साँची कह मोँसोँ आज कहाँ गई आई है ।
गईआई हौँ पास साँवरे के, कौन काज ?
तेरे लिये ल्यावन सुतेरिये दुहाई है ।
काहेतें न लाई फिरि मोहन बिहारीजू को,
कैसे वाही ल्याऊं ? जैसे वाको मन लाई है ।

पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।