शब्दों ने ओढी खामोशी
बोलेमेरी निगाहें।
मेहंदी, कंगना, कजरा, गजरा
फूल तुम्हें छूने को आतुर
अल्हा, कजरी, फाग सभी के
शरमीले से लगते है सुर
नजर, नजर से कहे
नजारे हम तो कुछ न चाहे
शब्दों ने ओढी खामोशी
बोले मेरी निगाहें।
तुम्हे देखकर भोर सुहाए
सांझ हुई सपनीली
जन्मों के प्यासे प्राणों ने
जी भर मदिरा पी ली
मनुहारों का मौसम आया
खुली जो तेरी बाहें
शब्दों ने ओढी खामोशी
बोले मेरी निगाहें।
स्नेह बांधता है बंधन
सौ जन्मों तक चलता है
अरमानों की कुंज गली में
हर सपना फलता है
दो अनजान मुसाफिर की फिर
मिल जाती है राहें
शब्दों ने ओढी खामोशी
बोले मेरी निगाहें।