उसके भूरे बाल झूल रहे थे
सुनहरी गोलाई में
उसकी आँखों में चमक रहा था
नीला समुद्र!
मैं देख रहा था
उसका अंग-प्रत्यंग
कि बोली वह स्त्री-
तारीफ करो मेरे बालों की
मेरी पलकों पर गिर पड़ो पत्थर की तरह
मेरी देह के वास्तुशिल्प का
करो रहस्योद्घाटन
नई-नई भंगिमाओं में!
करो कि तुम ने-
अपनी जानी गई भाषा में
यही सीखा है मेरे लिए!