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बोले ”सित दशने! भानु प्रसव पीड़ा से अरूण हुई प्राची / प्रेम नारायण 'पंकिल'

बोले ”सित दशने! भानु प्रसव पीड़ा से अरूण हुई प्राची।
शशिमुखी! माँगती दूध-भात सखि! शुकी पिंजरे में नाची।
पी रहा प्रतीक्षा की कब से कृशकाये! उन्मीलित प्याली।
कब विहॅंसेंगे सखि! कुन्द दशन कब सिहरेगी कुन्दन बाली।
दिनमणि-किरणें निकली तन्वंगी! जागो हिमकर सी हँस लो।
गदराई तरूणाई मृगनयनी! जागो, कंचुकि में कॅंस लो”।
आओ प्रिय! सूनी सेज विकल बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥96॥