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बोलों के देवता / सुमित्रा कुमारी सिन्हा

बोलों के देवता, बोल कुछ ऐसे बोलो !


ऐसे बोल कि जिनके शब्दों में अमरत्व-सिन्धु लहराए,

ऐसे बोल कि जिनको सुनने उच्च हिमालय शीश उठाए,

ऐसे बोलो, कि युग की साँसों में लय की मधुता तुम घोलो !


बोलों के देवता, बोल कुछ ऐसे बोलो !


सूझों के अंकुर उन्मादों की उर्वर धरती पर फूटें,

कहीं न कोमल कला-कुसुम नव कठिन ज्ञान के हाथों टूटें,

अंतरात्मा-कलाकार ! मत, निज को बुद्धि-तुला पर तोलो !


बोलों के देवता, बोल कुछ ऐसे बोलो !


करो मूकता की अर्चा तुम, व्यथा-अश्रुओं को न गिराओ,

उन्मादी बलिदान-पन्थ पर,फूलों जैसे शीश चढ़ाओ,

वाणी-घट में भरे वेदना-रस,जीवन सिंचित कर डोलो !


बोलों के देवता, बोल कुछ ऐसे बोलो !