बोलों के देवता, बोल कुछ ऐसे बोलो !
ऐसे बोल कि जिनके शब्दों में अमरत्व-सिन्धु लहराए,
ऐसे बोल कि जिनको सुनने उच्च हिमालय शीश उठाए,
ऐसे बोलो, कि युग की साँसों में लय की मधुता तुम घोलो !
बोलों के देवता, बोल कुछ ऐसे बोलो !
सूझों के अंकुर उन्मादों की उर्वर धरती पर फूटें,
कहीं न कोमल कला-कुसुम नव कठिन ज्ञान के हाथों टूटें,
अंतरात्मा-कलाकार ! मत, निज को बुद्धि-तुला पर तोलो !
बोलों के देवता, बोल कुछ ऐसे बोलो !
करो मूकता की अर्चा तुम, व्यथा-अश्रुओं को न गिराओ,
उन्मादी बलिदान-पन्थ पर,फूलों जैसे शीश चढ़ाओ,
वाणी-घट में भरे वेदना-रस,जीवन सिंचित कर डोलो !
बोलों के देवता, बोल कुछ ऐसे बोलो !