कहानी बोल नये सपने!
अरी अभागिन, पहिले ही
क्यों ओंठ लगे कँपने?
कहानी बोल नये सपने!
देख तो, प्राण में एक तूफान-सा
लोटता-सा चला जा रहा है कहाँ?
व्यक्ति-वामन, उठा आ रहा पैर ले
एक रक्खे यहाँ, एक रक्खे वहाँ;
श्रृंखला सागरों को पिन्हाता हुआ-सा
गगन खेल-घर-सा बनाता हुआ,
हर लहर में नया स्वाद लाता हुआ
हर बहर में नया जग बनाता हुआ-
पंख खोल अपने
कहानी बोल नये सपने!
रचनाकाल: खण्डवा-१९४५