बौरों के दिन
दादी-माँ के हाथों
कौरों के दिन ।
पत्तों के हाथ जुड़े
ये आँखों के टुकड़े
कितने अनुकूल हुए
औरों के दिन ।
पेड़ों की छाया है
अपनी भी काया है
फूलों की साँठ-गाँठ
भौरों के दिन ।
जहाँ नदी गहरी है
वहीं नाव ठहरी है
पत्थर के सीने
हथौड़ों के दिन ।