जाके जियत सुवास वास दश दिशहिँ पसारा। जाके वदन विलोकि विमल सुख है अधिकारा॥
जा को सवते हेतु वैर काहूते नाहीं। जाकी प्रभुसाँ प्रीति रीति सन्तन हियमाँही॥
प्रगट कला भगवन्तकी, भाव भक्ति सब कोई करै।
धरनी पूरन व्रह्म गति, वहुरि मरे ना अवतरे॥5॥
जाके जियत सुवास वास दश दिशहिँ पसारा। जाके वदन विलोकि विमल सुख है अधिकारा॥
जा को सवते हेतु वैर काहूते नाहीं। जाकी प्रभुसाँ प्रीति रीति सन्तन हियमाँही॥
प्रगट कला भगवन्तकी, भाव भक्ति सब कोई करै।
धरनी पूरन व्रह्म गति, वहुरि मरे ना अवतरे॥5॥