प्रवासी बिहारियों के लिए ब्रह्मपुत्र ही है गंगा
जन्मभूमि से पलायन कर
विस्थापन की पीड़ा झेलते हुए
पूरब की दिशा में आने वाले लोग
ब्रह्मपुत्र किनारे जल में खड़े होकर
अस्ताचलगामी सूरज को दे रहे हैं अर्ध्य
एक दिन के लिए ही सही
घाट के माहौल में वे महसूस करते हैं
अपने पीछे छूटे हुए गाँव-देहात को
शारदा सिन्हा का कैसेट बजाते हुए
किस कदर जज्बाती हो जाते हैं प्रवासी बिहारी
भले ही नदी का नाम बदल गया हो
सूरज तो एक ही है
जो जन्म से साथ-साथ चलता रहा है ।