मैं, उस उन्नत माथे के उभरे हुए हिस्से की तक़दीर
जिसे किसी ने नहीं छुआ अब तक।
छुआ होता तो तुम रो लिए होते उससे लिपट कर!
वो माथा हिमालय है, तुम्हारा ग़ुरूर
और वहाँ फिराई गयी
मेरी उँगलियों के अदृश्य निशान अमिट रहेंगे,
हमेशा के लिए मैं वहीं हूँ।
मेरी उंगलियों के निशान
तक़दीर की रेखाएँ हैं
जिन्हें कोई नहीं बदल सकता,
ब्रह्मा के लिखे की तरह,
खुद मैं भी नहीं मैं वहीं हूँ।