Last modified on 7 मार्च 2021, at 23:52

ब्रह्म कमण्डल से निकसी / अनुराधा पाण्डेय

ब्रह्म कमण्डल से निकसी अरु लीन भयी शिव जूट मझारी।
गंग रही उझराय जटा, बहु काल वहीं निज वेग बिसारी।
सोच भगीरथ भग्न मना, किमि संतति पाप कटे अति भारी।
घोर किये तप वे पुनि जैं, लट से शुचि धार तजैं त्रिपुरारी।