ब्रह्म तें पुरुष अरु पकृति प्रगट भई,
प्रकृति तें महत्तत्व,पुनि अहंकार है .
अहंकार हू तें तीन गुन सत,रज,तम,
तमहू तें महाभूत विषय पसर है .
रजहू तें इंद्री दस पृथक पृथक भई,
सत्तहू तें मद,आदि देवता विचार है .
ऐसे अनुक्रम करि शिष्य सूँ कहत गुरु,
सुंदर सकल यह मिथ्या भ्रमजार है .