कियो नहि यज्ञ जय योग वैराग कछु, तीर्थ व्रत नेम साध्यो न कोई।
पढयो पूरान गुन ज्ञान जान्यो नहीं, धरयो नहि ध्यान अभियान खोई।
पाँच परपंचते साँच भाष्यो नहीँ, नाच नाच्यो कपट बीज बोई।
सोवते जागि अपनाय आपुहि लियो, धरनि कह धरनि योँ धन्य सोई॥4॥
कियो नहि यज्ञ जय योग वैराग कछु, तीर्थ व्रत नेम साध्यो न कोई।
पढयो पूरान गुन ज्ञान जान्यो नहीं, धरयो नहि ध्यान अभियान खोई।
पाँच परपंचते साँच भाष्यो नहीँ, नाच नाच्यो कपट बीज बोई।
सोवते जागि अपनाय आपुहि लियो, धरनि कह धरनि योँ धन्य सोई॥4॥