मेरे आबा केः थे नामहरमे-तौक़ो-ज़ंजीर
वो मज़ामी जो अदा करता है अब मेरे क़लम
नोके-शमशीर पे लिखते थे ब-नोके-शमशीर
रौशनाई से जो मैं करता हूँ काग़ज़ पे रक़म
संगो-सहरा पे वो करते थे लहू से तहरीर
मेरे आबा केः थे नामहरमे-तौक़ो-ज़ंजीर
वो मज़ामी जो अदा करता है अब मेरे क़लम
नोके-शमशीर पे लिखते थे ब-नोके-शमशीर
रौशनाई से जो मैं करता हूँ काग़ज़ पे रक़म
संगो-सहरा पे वो करते थे लहू से तहरीर