सत युग त्रेता द्वापर मँह प्रभु, आवहि जग तनुधारी।
कर्त्ताराम भजै सुर नर मुनि, मेँ ताकी वलिहारी॥1॥
कलयुग के भक्तन को कहिया, जँहलोँ मनहि समाई।
जिनकी दया सुखहि नर प्रानी, भवसागर तरि जाई॥2॥
शुकदेव, रामानन्द, नामदेव गोरखा, दत्त, कबीरा।
रंका, वंका सेना धन्ना, दादू पीया, मीरा॥3॥
पिरिथा, पुनि रविदास, सुरसुरा, बूढन, औ वाजीदा।
तुलसी, जयदेव, योगा नानक, नरहरि, सदन, फरीदा॥4॥
घूरघाटमाँ मिर्जा सालिम, मकरँद माधवदासा।
नंतानँद, परमानँद, कूबा, कामा, काँधा, व्यासा॥4॥
बँभन विदापति, कृष्णदास, जड़भरत, जनक अर्धंगी॥
परशू, पदुम, कमाल, मुर्तुजा, भावा, गल गल जंगी॥6॥
विष्णु स्वामि निमानी जाना, खोजी, कर्मा कालू।
ज्ञानी, गोविंद सूर, चतुर्भुज, गोवर्द्धन गोपालू॥7॥
धरनीदास दास दासन को, हृदये हेत बढावै।
एकहि ठाकम सकल साधुन को, जोरि हाथ शिर नावै॥8॥