Last modified on 7 जून 2013, at 06:39

भगसिंहक वसीयतनामा / रमेश

साम्राज्यवादक विरूद्ध
उच्चतम फारेनहाइटी पैमाना पर
खोलैत हमर धमनीक
अरूण शोणित
तों फँसरीक डोरी
देखि सेरइहें नहि।
अहर्निशि आर्तनाद करैत
सागर-सिपाही/हमर मीत
अदौकालसँ ताल ठोकैत
मशीनी/हिमजीवी पर्वत-सम्राट
शीतयुद्धी वनरभौकी
आ परमाण्विक विभीषिकासँ
तों डरेइहें नहिं !
चिनगोला उगलैत
लाखक लाख
ज्वालामुखीसँ आच्छादित
हिन्दुस्तान बीत-बीत माटि
बारूदी आकाश
कोटि-कोटि बन्हैल मुक्का
तों कहियो गुलामीक कोल्हुमे
पेरइहें नहि।
हे हमर देसक
हमरे सन अदना लोक
टूटनक दंश आ
नागफेनी बिसबिस्सीसँ
गुलाबक एक-एक टुस्सी
आ गहूमक एक-एक
पेंपीकें
गहनमरू हेबासँ बचबैत
सभ कियारीक
सभ पौधाकें
एक्के रंग पटबिहें।
हे हमर आगत पीढ़ी
हमर थातीकें बचबिहें !
ई पुरिबा बहैत रहए
ई धरती
अँगेठी-मोड़ करैत रहए

हम लाख-लाख भगतसिंह
कहियो बेंजामिल मोलोइशे
कतौ नेल्सन मंडेला भ’-भ’
लाख-लाख बेर अबैत रही।