भजकटिया डार के रांधे हँव मसूर, रांधे हँव मसूर
येल-येल के खावय मोर बूढ़हा ससूर...।
बड़े बिहनिया धरसा ले टोर के,
लाने रिहिस बबा पटका म जोर के।
कहूँ नई रांधतेंव त बततिस मोरे कसूर।
झिंतरी झिंतरी कांटा फरे गोल-गोल,
उसन के बीजा ल निकालेंव पिचकोल।
एक घाँव खाही तेन दुसरइया मांग ही जरूर।
मिरचा फोरन डार रांधेव बघार,
पारा-परोस ममहागे चारे-दुवार।
नई चाही दार चिखना नई अथान के कूर।
भजकटिया मसूर पुस्टई के खजाना।
बबा ह कहिथे नाती जरूर खाना।
मुच-मुच मगन बबा, नाचे मन-मंजूर।