Last modified on 3 नवम्बर 2017, at 12:43

भजन-कीर्तन: कृष्ण / 1 / भिखारी ठाकुर

भादो, देवकि देव गर्भ जनम गोपी गृहे बर्द्धनम्।
माया पुतन जीव ताप हरणं गोवर्धनो धाराणाम्।
कंसादिक छेदनं कौरवादि हनतं कुन्ती सुताः पालनं।
एतत् भागवत पुराण कथिंतं श्री कृष्ण लीलामृतं।

प्रसंग: इस श्लोक के आधार पर कीर्त्तन कजरी लय में।

जय गोपाल, जय गोपाल, जय गोपाल, जय गोपाल।
देवकी माता, पिता बासुदेव साथे रहत सादा बलदेव कहइलन नंद, यशोदा लाल-जय-जय गोपाल...
लिहलन पूतना के जान, तवन जानल जहान; होके गोदी के बाल॥ जय गोपाल...
भइल बृज में पुकार, नख पर गिरिवर धार; कृष्णचंद्र तत्काल। जय गोपाल...
देखिकर अत्याचार; मरलन कंस के पछार; हउवन कालो-के-काल॥ जय गोपाल...
कौरव वंस के हतन् कइलन, करिके जतन भइलन पाण्डव निहाल। जय गोपाल...
करत ‘भिखारी’ गान; श्री भागवत पुरान; श्लोक के निकाल। जय गोपाल...