प्रसंग:
सखियों का साथ छोड़कर कोई सखी श्यामसुंदर को देखती है और आकर्षित होती है। फिर अपनी सखियों के गोल में मन मारकर लौट जाती है।
सखियन के संघत छोड़ के निरखत राजकुमार।
श्यामल गौर धनुष कर सोहत गरदन में मणिन के हार॥
क्रीट मुकुट केश घुघुर बारे भाल में तिलक टहकार।
लौट गई पुनि निज दल माहीं; तन के रहत संभार॥
सोभा धाम मन-ही-मन सोचत कहवाँ के हउवन जोड़दार।
दास ‘भिखारी’ चरण सिर नावत गावत मति अनुसार॥