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भजन / 5 / भील

भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

टेक- मयली गोदड़ी साधु धोई लेणा।
उजळी कर लेणा, मयली गोदड़ी साधु धोई लेणा।

गोदड़ी बणी रे गुरु ज्ञान की, हीरा लाल लगाया,
मयली गोदड़ी साधु धोई लेणा।
काय की बणि रे साधु गोदड़ी, कायन केरा धागा
कायन केरा धागा,
कोण पुरुष दरजी भया, कोण सिवण हारा,
मयली गोदड़ी साधु धोई लेणा, उजळी कर लेणा
मयली गोदड़ी...

चौक-2 जल की बणी रे साधु गोदड़ी, पवन केरा धागा,
हो पवन केरा धागा, आप पुरुष दरजी भया,
हंसा सीवण हारा,
मयली गोदड़ी साधु धोई लेणा, उजळी कर लेणा
मयली गोदड़ी...

चौक-3 काहाँ से पवन पथारिया, कांसे आया जल पाणी,
अरे कांसे आया पाणी, कांसे आई सोवागणी,
कब से धरती रचाणी,
मयली गोदड़ी साधू धोई लेणा।

चौक-4 आगम से पवन पधारिया, पीछे आया जलपाणी,
आरे पीछे आया पाणी, इन्द्र से आई सोवागणी,
तब से धरती रचाणी,
मयली गोदड़ी साधु धोई लेणा, उजळी कर लेणा
मयली गोदड़ी...

चौक-5 धवळो छोड़ो रे खुर वाटळो मोत्या जड़ि रे लगाम
अरे मोत्या जड़ि रे लगाम, चाँद सूरज बेड़ पेगड़ा,
उड़ि न हुयो रे असवार,
मयली गोदड़ी साधु धोई लेणा, उजळी कर लेणा
मयली गोदड़ी...

छाप- अकास से धारा उतरिया, धारा गई रे पयाळ,
अरे धारा गई रे पयाळ, कईये कबीर सुणो साधू
अरे हंसो गयो सत लोग,
मयली गोदड़ी साधु धोई लेणा, उजळी कर लेणा
मयली गोदड़ी साधु धोई लेणा।

हे साधु पुरुष! यह काया मैली हो गई हो तो इसे धोकर स्वच्छ कर ले अर्थात्
भक्ति करकेक उज्ज्वल कर ले। हे साधु पुरुष! गुरु ज्ञान की गोदड़ी (बिछावन)
बनी है, इसमें हीरे और लाल लगे हैं। यह काया वैसे ही प्राप्त नहीं हुई है। चौरासी
लाख योनियों के बाद यह मानव काया प्राप्त हुई है। इस काया को भक्ति के
द्वारा उज्ज्वल कर ले।

यह काया जल से बनी है और पवन के धागे से सी गई है। गोदड़ी सीने को भगवान
दर्जी बने। हरे हंसा (जीव)! भगवान इसके बनाने वाले हैं।

पवन कहाँ से आया और जल कहाँ से आया? कहाँ से सुहागन आई और यह काया
(धरती) कब से बनी?

आगम से पवन का आगमन हुआ और उसके बाद जल आया। और इन्द्र के यहाँ
से सुहागन आई तब ये धरती बनी और जीव की उत्पत्ति हुई।

सफेद घोड़ा उसका खुर कटोरेनुमा, उसकी लगाम मोतियों से जड़ी है। चन्द्रमा
और सूर्य दोनों पेगड़े और उछलकर उस पर सवारी की। अरे जीव (हंसा)! इस
काया को भक्ति से उज्ज्वल कर ले, ताकि तुझे नरक का मुँह न देखना पड़े।