टेक- हारे सतगुरू का भरम नी पायो रे,
लियो रतन कोख अवतार रे।
चौक-1 आठ मास नव गर्भ रयो रे।
हंसा कोन पदारथ लायो रे।
आरे हंसा कोन पदारथ लायो रे।
कितना पुन से आयो मोरे हंसा,
ऐसो काई नाम धरायो रे।
लियो रतन कोख अवतार रे।
चौक-2 दान पुन प्रणाम कियो रे हंसा,
वइ काया संग लायो रे।
इतना पुन से आयो मोर हंसा,
ऐसो हीरा नाम धरायो रे।
लियो रतन कोख अवतार रे।
चौक-3 तीनी पण तुन धुल म गमायो हंसा,
हजुव नि समझ्यो गंवार रे।
अरे हंसा हजुव नि समझ्यो गंवार रे।
बइण भाणिज तुन वलकी नी जाण्यो।
थारो रगीसर को अवतार रे।
लियो रतन कोख अतवार रे।
चौक-4 जहाज पुरानी नंदी वव गयरी, केवटियो नादान रे।
आरे हंसा केवटियो नादान रे।
धर्मी राजा पार उतरियो, ऐसो पापी गोता खाय रे।
लियो रतन कोख अतवार रे।
कइये कमाली कबिर सा री लड़की ये निरबाणी।
अरे हंसा ये पंथ है निरबाणी।
गऊ का दान तुम देवो मेरे हंसा हो, तेरा धरम उतारेगा पार।
लियो रतन कोख अवतार।
- हाँ, मनुष्य तूने सतगुरू का भेद नहीं पाया, तूने रत्न की कोख से अवतार लिया है। (माँ की कोख को रतन कोख कहा गया है।)
आठ नौ माह त माँ के पेट में रहा, कौन सा पदार्थ लाया? अरे मानव! तू जान ले कितने पुण्य से मानव रूप में आया, ऐसा कौन सा नाम रखा है?
तूने पूर्व जन्म में जो भी दान-पुण्य और अराधना की, वही इस काया (शरीर) के साथ लाया है। इतने पुण्य से तू आया है और हीरा नाम रखा है। (मानव को हीरा माना है) जैसे धरती माता की कोख से बड़े प्रयत्न के बाद हीरा बाहर निकलकर संसार के लोगों के सामने आता है, वैसे ही माता की कोख से मनुष्य आता है।
अब मनुष्य के बुढ़ापे को कहा है कि बालपन, किशोर, युवावस्था तीनों पन धूल में गमा दिये अर्थात्तूने अपनी मुक्ति के लिए कुछ नहीं किया। अरे गँवार! बुढ़ापा आ गया, तू अभी तक नहीं समझा। बहन-भाणिजी को तूने नहीं पहचाना अर्थात् तूने नहीं पहचाना अर्थात् तूने बहन-भाणजी को दान नहीं दिया। तेरा जन्म व्यर्थ गया।
(भजन में बहन-भाणजी को दान देने की प्रेरणा दी गई है।)
अरे मानव! जिस प्रकार जहार पुरान हो और नदी गहरी हो और नाविक नादान (नासमझ) हो, उसमें धरम करने वाले राजा (मनुष्य) पार हो जाते हैं और पापी लोग नदी में गोते खाया करते हैं।
कबीरजी की लड़की कमाली कहती है कि- अरे मानव! गौ का दान करो तो वह धरम तुझे पार उतार देगा। (भजन में गौदान की महत्ता प्रतिपादित की गई है।)