हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
भजन हरि का कर प्राणी
दो दिन की है तेरी जिन्दगाणी
गरभ में जब दुख पाया था
धियान प्रभु सै लगाया था
अब क्यूं करता मनमाणी
भजन हरि का कर प्राणी
जब धरम राज कै जावैगा
वहां तोहे कौन छुड़ावैगा
माया संग नहीं जाणी
भजन हरि का कर प्राणी
माया देख के फूल ग्या
प्रभु को बिल्कुल भूल गया
माया साथ नहीं जाणी
भजन हरि का कर प्राणी