Last modified on 20 फ़रवरी 2010, at 20:56

भटकन / कात्यायनी

मैं साँसों से चोटिल
स्पर्शों से
लहूलुहान।
कविता से
पाती हुई
सिर्फ़ बेगानापन।
निर्मम आलोचनाओं के
सुखों की तलाश में
भटकती
अकेली नहीं शायद।

रचनाकाल : सितम्बर, 1999