गाव गान कि जन-जन जगे आत्मसम्मान मितवा
अब तू रचे चल जनमन के हिन्दुस्तान मितवा
कबले भटक-भटक भटकइब, कब ले गीत अनर्गल गइब
कबले सरस्वती के बेचब वरदान मितवा
कबही वन में रास रचवल, कबही झूठा जगत बतवल
कबही पत्थर पर बलिदान चढ़वल प्रान मितवा
अबले बात न्याय के दूरे, हक जे भेंटल, उहो अधूरे
जेकर ढोल बजवल, डुबा चुकल ईमान मितवा
कब से ग्राह पकड़ले बाटे, फन्दा चल देश के काटे
कबले राह चितइब, ना अइहें भगवान मितवा
रचनाकाल : 13.05.1984