Last modified on 14 जून 2012, at 23:41

भरोसा / अरविन्द श्रीवास्तव

जैसे-जैसे पहचाना रिश्तों को
कलेजा थर्राया
हृदय हुआ लहूलुहान !

पाँव फिसले चौरासी में
नब्बे में टूटीं हड्डियाँ
चौरानवे में किडनी फेल
अनठानवे में खौले ख़ून
और हुई इधर आँखें धुँधली
अभी-अभी माथा ठनका

शरीर के यही कुछ हिस्से थे
हमारे रिश्तेदार
इनकी अलग-अलग पहचान थी
और अलग-अलग सत्ता

लाख आफ़त आने पर भी
इन्होंने कभी मुझ पर भरोसा नहीं किया!

यह अलग बात है कि
इन्हें तनिक भी कुछ हुआ
तो मैंने
ख़ूब बोला हल्ला!