लगता है क्यों
हँसी वह तुम्हारी
जो नहीं सुन सका
परे कर उदासी के
ठंडे बादलों को
होगी कुनकुनी
दमकते सूरज सी
क्यो हो चला ऐसा
छवि तुम्हारी अनदेखी
करती है आश्वस्त
विपन्न मेंरे मन को
खनकती गुल्लक सी
भरोसा क्यो है!
सैर पर मिलती सुबह की
अपरिचित उष्ण स्मित सी
रहोगी सदैव उपस्थित
मेंरे जीवन में तुम