भर देते हो अरुण करों से
माँग अमंडित, स्मित आशा की!
तम का आँगन धुल जाता है
कलि-कुल बकुल मुकुल जाता है;
माटी का मंडन बनने को
तारा-मंडप तुल जाता है
हर लेते हो अनुदय-संशय'
स्वस्ति-ऋचा से खग-भाषा की!
भर देते हो अरुण करों से
माँग अमंडित, स्मित आशा की!
तम का आँगन धुल जाता है
कलि-कुल बकुल मुकुल जाता है;
माटी का मंडन बनने को
तारा-मंडप तुल जाता है
हर लेते हो अनुदय-संशय'
स्वस्ति-ऋचा से खग-भाषा की!