Last modified on 5 फ़रवरी 2010, at 17:39

भर दे जो रसधार दिल के घाव में / रवीन्द्र प्रभात

भर दे जो रसधार दिल के घाव में,
फिर वही घूँघरू बंधे इस पाँव में !


द्रौपदी वेबस खडी यह कह रही -
अब न हो शकुनी सफल हर दाव में !


बर्तनों की बात मत अब पूछिए -
आजकल सब व्यस्त हैं टकराव में !


है सफल माझी वही मझदार का -
बूँद एक आने न दे जो नाव में !


बात करता है अमन की जो "प्रभात"
भावना उसकी जुडी अलगाव में !