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भवन / महेन्द्र भटनागर

कुएँ की दीवारों जैसा

ऊँचा परकोटा,
सँकरे-सँकरे गलियारों जैसा
हर कमरा छोटा,
जिसमें,
ना उपवन
ना आँगन
आधुनिक वास्तु-कला का अंकन ?
या
संकुचित हृदय की
प्रतिकृति,
स्वकेन्द्रित मन का
दर्पण !