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भविष्य की पुकार / केदारनाथ अग्रवाल

जहाँ कहीं
अप्रकाशित अंधकार है
वहाँ जाना होगा
मनुष्य के
डूब गए सूर्य को उगाना होगा
दिन की नदियाँ
स्वेद से बहाना होगा
यही आज की
भविष्य की पुकार है

रचनाकाल: २४-०९-१९६५