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भविष्य के प्रति / मोहन अम्बर

मेरे प्राण पपीहे बतला कब आयेगा ऐसा दिन?
जिस दिन पढ़ने लगे आदमी, विधना के बिगड़े लेखे,
माली अपने फूल बगीचे कभी नहीं उजड़े देखे,
पतझर प्यास अजाने से हों, ऋतुएँ इतनीं रूपा हों,
भोर नहीं हो अधिक तरूण हों साँझ नहीं हो अधिक मलिन,

कब आयेगा ऐसा दिन?
ठोकर लगे किसी को लेकिन, सिसकी कोई और भरे,
प्रीति उजेरा इतना करदे, ख़ुद छाया से ज़ुल्म डरे,
मन-फूलों का हार गुंथे ओ नाश-पहर को फाँसी हो,
एक डगर अंधियारी हो तो जल सकते हों दीप अगिन,

कब आयेगा ऐसा दिन?
गम की लाश तलाशी जाये, ऐसा समय करीना हो,
श्रम का तन पानी हो लेकिन, आँसू नहीं पसीना हो,
थकना रूकना कठिनाई हो, गति कुछ ऐसी हावी हो,
आँसू पीकर कहे बटोही, क्या होती है बात कठिन,
कब आयेगा ऐसा दिन?