भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
वर पक्ष- पाच फेरा फिरजि बेना, पारकि लाड़ी छे।
वधू पक्ष- पाच फेरा फिरजि बेनी, पारको लाड़ो छे।
वधू पक्ष- लाकड़ि काटि देजि बेनी, लाड़ो टेके-टेके चाले।
वर पक्ष- लाकड़ि काटि देजि बेना, लाड़ी टेके-टेके चाले।
- यह गीत भाँवर के समय वर-वधू के लिये गाया जाता है। वास्तविक रूप से
चार फेरे में दूल्हा आगे रहता है और तीन फेरे मंे दुल्हन आगे रहती है।
गीत में कहा गया है- बना पाँच फेरे फिरना लाड़ी पराई है। इसी प्रकार बनी को
कहा है- पाँच फेरे फिरना दूल्हा पराया है। दूल्हे-दुल्हन की हँसी करते हुए कहा
गया है- बनी लकड़ी काटकर देना, बना उसे टेकते हुए चलेगा। फिर दूल्हे को
कहा है- लकड़ी काटकर देना, दुल्हन उसे टेकते हुए चलेगी।