हिम किरीटपर जड़ित सूर्य-शशि गंगा-जमुनी
खचित विविध विधि मणि-माणिक्य किरण मन रमनी
अति उतुंग गिरि-शृंग शुभ्रतम हैमी रेखा
कनक धातु रुचि रचित मुकुट-पुट, के कर लेखा?
तनिक भाल शिखि चन्द्रकित दिव्य दर्शनालोक लय
लोक अशेष अशोक हो, रहओ न शेषो दैन्य भय।।1।।
अलक झलक जनिकर हिमवत-वन सघन श्यामला
वदन कमल रुचि रुचिर मानसी आभा अमला
कस्तूरी नेपाल भाल, केसरि कश्मीरी
सिन्दूरी सीमन्त पूर्व दिग् रविक अबीरी
तनिक मुखक छवि-छटा, कवि-भाव घटा घन विद्युते
करओ छनहि मे दिग-दिशा जगमग अगजग द्योतिते।।2।।
जूड़ा नेफा लद्दाखी, सीमन्ते सीमा
वेणी - बन्धक छोर रेशमी तिब्बत खीमा
कुटिल अलक पसरल पेसावर देसाबर धरि
गिरि-तट लट नागिनि वर्मी वन घन परिसर धरि
हिम उपत्यका उज्ज्वला भाल जनिक भल झकझके
ऋतु-ऋतु कुसुमित वन घने बिन्दी टिकुली चकमके।।3।।
भृकुटि कुटिल कोशी - तट मिथिला नेत्र दर्शिनी
वैशाली पल कलित अंग वरुनी विमर्शिनी
गन्धमादनी सृग - दावक काशी जनि नासा
कान कान्यकुब्जेक जे अवध - मण्डले कुण्डले
श्रवण सुखद शब्दे व्रजे सुनत के न भू - मण्डले।।4।।
गोर गोल कश्मीर कपोले केसरि रंजन
सिन्धु सैकती मुक्तावलि दन्तावलि मंजन
अधर मधुर व्रज - अवध राम - कृष्णांकित नामे
शुचि रुचि चिबुकक बिन्दु-रेख उज्जयिनि ललामे
ग्रिम दिल्ली वलयित बलित शिरोधरा उन्नभित नित
जय-मालक अधिकारिणी ग्राम-काय, पुर-शिर मिलित।।5।।
कत ममत्त्व! वत्सला! सन्ततिक हित उर गिरि झरि
शत-शत स्रोतोवहा पयस्विनि अमृत दूध भरि
उदर क्षेत्र - परिसर उर्वर, अन-धन-लक्ष्मी अँटि
त्रिवलि त्रिवेणी बलित-ललित कटि कलित विन्ध्य तटि
बनि जनि’ सुर - सरि धार ई हार हीरकक लम्बिते
ग्रिम अग्रिम उर उदर पुनि सिन्धु नितम्बिनि संगते।।6।।
पंचनदक अगुलि अजित मुष्टिक पजाबो
जनि भय कम्पित रहइछ अरिदल सहमल आबो
राजस्थान मराठा भुज - बल रक्षित - गाता
दश दिश दश भुज विस्तारथु अथ भारत माता
अमल कमल वर अभय कर कलित सहित कोमल कला
चक्र चंक्रमण, शंख ध्वनि, खंग - खप्परहु रक्तला।।7।।
रोम - रन्ध्र आन्ध्रे, वैदर्भी नाभि गभीरा
उर परिवेशे मध्य देश, दक्षिण वन - चीरा
रोम - राजि शुचि अंग झार - खण्डक वन सघने
पद रस मद मदरास, केरली कदली जघने
मैसूरी चन्दन जनिक अंग विलेपन साधना
अतल शान्त सागर सलिल पद - सेतुक प्रक्षालना।।8।।
मगध बोध जनि अंग वंग मधु मधुरी वानी
बदर्भी गौड़ी पांचाली रीति प्रमानी
रूप अनूपे कामरूप, लावण्य उत्वला
केयूरो मणिपूर, भोजपुर ओज उर बला
बुन्देली धुनि बुलन्दी, वाहन गुर्जर केसरी
जनिक ज्ञान वैभव विभा दक्षिण मन्दिर देहरी।।9।।
मढ़बाले गढ़, पानीपत - कुरुखेते खेते
हरियानी खरिहान, धेनु-धन मत्स्य निकेते
खनिज खजाना छुटा घटय ने नाग - पुरस्कृत
तेलि असामी, पनिभर चेरो - पुंज समुद्यत
हलधर माथुर मैथिलो, जन - परिजन जनपद जते
छहरि - नहरि गिरि नद-नदी, मस्त गृहस्थी भारते।।10।।
धोबि हिमालय, रँगरेजो शिलांग कत रंगी
जल-थल मल रज सफा करय निर्झर बनि भंगी
विन्ध्य शिलबटे, उखरि - मुसर जत साल ताल बन
उत्तर खंड विशाल सजल दल पल्लव फुल - वन
बनिक मरुधरा तुलाधर, सिक्ख जाट रजपूत भट
मौड द्रबिड पूरहित सचर अनुचर वनवासी निकट।।11।।
नेना - भुटका पढ़ओ-गुनओ तेँ गुरु-कुल ऋषि-कुल
मुलुक-मुलुक केर शिष्य जुमओ सौजन्यक सन्तुल
टोल - पीठ विश्वक विद्या शिक्षा दीक्षा हित
विक्रम - तक्ष शिला, नालन्दा कत नव निर्मित
ज्ञान योग प्राचीन चित, नव विज्ञान प्रयोग नित
शिल्प कलाक नियोग हित, खुजल खुजत कत मत-बिहित।।13।।
जनि कन्या कुमारिका पूजथि प्रथम तुषारी
तदनु व्रत - स्नाता दाक्षायणि सिन्धु कुमारी
शिव कैलाशी वृष वाहन चलि, भिलथि सिन्धु - तट
सिंह - वाहिनी वर - वर्णिनि वर वरण करथि झट
पूर्व प्रशान्त गभीर पुनि पश्चिम उद्धत युग लहरि
निलित शिलान्तर दर्शनहि उर विवेक आनन्द भरि।।13।।
फट्टक खैबर - बोलन घाटी हिम - गिरि टाटी
सिन्धु तरंगित परिखा घर बान्ह’क परिपाटी
अङना समतल भूमि उतर दिस, दछिन दलाने
जतय बनल सठ - मन्दिर नित प्रति घण्टा ध्वाने
बैसक चत्वर चतुर्मुख चारू धाम प्रमाण अछि
सप्त-पुरी विश्राम हित रचित कुटी अनुमान अछि।।14।।
अहमदबादे सजय सजाबय धोती अंगा
पाद मखार क इन्तिजाम तिरहुति दरभंगा
बर - बजार अछि खुजल सजल बबइ - कलकत्ता
टहलबा क हित गिरि - बन निर्झर तट अलबत्ता
चितरंजनमे सबारी कसल तुरगस - वेगिनी
बिजगापत्तन तरणि कत झिलहेरि क रुचि केलिनी।।15।।
पूब -पछिम अछि बाड़ी - झाड़ी बाग - बगीचा
पटौनी क परिबंध कयल निधि नहरि लगीचा
कोन - कोन मे भस्ल बखाड़ी पाँत - पात कय
खिड़की द्वीपक खुजल हवा पुरिबा पछबा लय
चान - सुरुजकेर जकर घर रजत - स्वर्ण दीपक जरय
ऋतु - ऋतु मन रंजन करय शीत ताप सन्तुलित कय।।16।।
लंक लेत लंको यदि भृकुटी तनय कनेको
बर्महु केँ अभिचंक होयत यदि तनी छनेको
थर्थर हिन्द - चिनहु, मलयेशहु कपन झपन
श्याम अनाम सुनाम, शृंग सिर लय पद-चंदन
पूर्वहिसँ पूर्वीय दिस छल सोदरहिक भावना
नाम गाम अभिजन सबहु सब तरि हिन्द उपासना।।17।।
अफरीको करते न फरीकी, अरब न रगड़ो
मिश्र ग्रीक टर्की क्यौ ने पुनि ठानत झगड़ो
ईरानो न अरान करत, अफगान न फानत
हमर लौह बल पाकिस्तानो मन अनुमानत
बिपरीतहु जे पड़ोसी तहुपर सदय पिरीत छल
आक्रमणहु मे अविचलित, अन्त हमर तेँ जीत छल।।18।।
अङरेजोक करेज न जर्मन पैर जमौते
पुर्तगाल गलते, फ्रासी फँसते यदि औते
चेक जेक उजबेक न ककरो डेग ससरते
अस्तिरिया - अस्तेलियाक हस्ती न उमगते
साम्राज्यक विस्तार जे चाह, न तनि निस्तार अछि
मित्र राष्ट्र बननहि सभक कल्याणक संचार अछि।।19।।
चीनी चनकि चौंकि चुप्पहि हटि जायत अपने
रूस अमरिकहु केँ फबतै नहि दल गत सपने
पानि - पानि अपने जापानो यदि अभियानी
गुरु लग गुरुअइ चलइ न पुनि चेले अनुमानी
बाद - बिबादक प्रसर की? जे संबादक बाहके
युग पूर्वहिसँ भारते सुख - शान्ति क सम्पादके।।20।।
मुलुक - मुलुककेर मल्ल पछड़ि जयते मयदानी
चलि नहि सकतै कोनहु खनहु कन भरि सयतानी
दछिनही उतरंग हवा पछवा वा पुरिबा
चलत न ढाहय - ढुहय पुङत छुबि अपने हुरिबा
किन्तु सबहु संभव विभव प्रजा पूत जत भारती
जननि क नित मन-मंदिरहि यदि च उतारथि आरती।।21।।