तुम क्या गए ये पृथ्वी सूनी हो गई
जैसे काटने को दौड़ता है हर दिन
कैसे बिताऊँ यह जीवन पहाड़-सा
अब तुम ही बताओ, तुम्हारे बिन
उड़ रहे नभ में कविताओं के बीच
तुम बन गए फूलों का पराग
कवियों के मन में बस गए हो तुम
कभी राग बन झरते हो, कभी आग
तुम क्या गए ये पृथ्वी सूनी हो गई
जैसे काटने को दौड़ता है हर दिन
कैसे बिताऊँ यह जीवन पहाड़-सा
अब तुम ही बताओ, तुम्हारे बिन
उड़ रहे नभ में कविताओं के बीच
तुम बन गए फूलों का पराग
कवियों के मन में बस गए हो तुम
कभी राग बन झरते हो, कभी आग