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भारपाई नै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'

चौरासी में विधुर वेदना,
बड़ा विकट दुखदाई छै।
हँसना रोना दोनों मुश्किल
कभी नहीं भरपाई छै।
जों हँसभौ दुनिया हँसथों
जों कानभौ तेॅ की कहथौं!
भीतरॅ में की-की बीतै छै
तोरा छोड़ी कीॅ जानथौं!
सरस्वती रं दया दृश्टि छै,
कलम रात दिन जागै छै।
साफ-साफ लिखनें जाय छीयै,
जहाँ जेनाँ मोॅन भागै छै।
कोय चीज रॅ कमी न हमरा,
पुत्रवधू कलियुग अपवाद।
पोतोॅ अगल बगल में सूतै,
केनाँक रहतै जी अवसाद?
खाय-नहाय रॅ आपनों मरजी,
पूूछिये केॅ बनतै खाना।
मूत्र द्वार सें रक्तपात नें
करनें छै बंदिश नाना।
धूप-धाप में नैं जा बाबू।
बड़ा भाग्य सें बचेलेॅ छौ।
भोला बाबा केॅ किरपा सें
मृत्यु द्वार सें घुरलॅ छौ।
काम धाम केॅ चिन्ता छोडँ,
करॅ अभी विस्तर विश्राम।
पढ़ै लिखै केॅ बात अलग छै,
भलैंह भजै छौ पावन नाम।

27/07/15 प्रातः 6.15