डॉ0 भावना कुँअर की संवेदना निराली है । अपने गाँव के नीम के पेड़ की निबौंलियों को अपनी यादों के आईने में देखती है -
नीम का पेड़
बहुत शरमाए
नटखट-सी
निबौंलियाँ उसको
खूब गुदगुगाएँ
तो उन्हें कहीं आँगन में खेलती धूप में माँ अनाज सुखाती दिखाई देती है ;जिसमें कबूतरी का समावेश उसे मार्मिक बना देता है-
आज फिर माँ
अनाज़ सुखाएगी
वो कबूतरी
पल भर में सब
चट कर जाएगी
भावना जी के ताँका का हर एक शब्द पाठक के मर्म को छू लेता है । जीवन भर हर एक व्यक्ति किसी न किसी अभाव से व्यथित रहता है ; सम्भव: यही जीवन का सत्य है-
आँसू गठरी
खुलकर बिखरी
हर कोशिश
मैं समेटती जाऊँ
पर बाँध न पाऊँ
इन पंक्तियों की व्यापकता देशकाल की सीमाओं से परे हर इंसान की नब्ज़ पर हाथ रखती है।