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भाव दो,भाषा प्रखर दो शारदे / ओमप्रकाश यती

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भाव दो, भाषा प्रखर दो शारदे
लेखनी में प्राण भर दो शारदे

मेरे मानस का अँधेरा मिट सके
ज्ञान के कुछ दीप धर दो शारदे

सत्य को मैं सत्य खुल कर कह सकूं
ओज दो, निर्भीक स्वर दो शारदे

शब्द मेरे काल-कवलित हों नहीं
पा सकें अमरत्व , वर दो शारदे

मेरे जीवन के हर इक पल को ‘यती’
सर्जना के नाम कर दो शारदे