अँग्रेज़ निगल जाते हैं
अपने ढेरों अक्षर
शायद अपनी औपनिवेशिक राजनीति के कारण
चीनी फूले नहीं समाते ख़ुशी में
अपनी हर लकीर से
जबकि विदेशी
चुपचाप फैलाते हैं अपनी आँखें
चीनी लिपि के सामने
जर्मन दबाते हैं अपनी ही क्रियाओं को
अपने ही वाक्यों की बन्द गली में
तुरन्त स्पष्ट हो जाता है
कि कुछ तो घटित हुआ है
ज़रूरत बस वर्तमान काल को सँभाल कर रखने की है
ताकि स्पष्ट किया जा सके --
जो घटित हुआ वह क्या था
पाप है यूनानी भाषा में
याद न करना
प्राचीन यूनानियों की विद्धता को
रोमन भाषाओं से कहीं-कहीं
प्राकृत लैटिन की गन्ध आती है
जॉर्जियाई मदद करती है जार्जियावासियों की
जिस तरह इतालवी इटलीवालों की
अपने हाथ हिलाते रहने में
एस्तोनियाई बोलने वाले
तैरते हैं स्वरों पर
जैसे पाताल-लोक में
जापानी आराम से बैठ जाती है
छपी हुई आकृतियों में
गतिशील रहती है
बिजली के अर्द्धसंवाहकों में
रूसी में
पढ़ने
और उससे कहीं अधिक बोलने का अनुभव
बताता है
कि बहुत अक्सर यह कहा जाता है
कि हमसे जितना हुआ उससे अच्छा चाहते थे
कहते हैं ख़ासकर तब
जब शब्द और कर्म में मेल नहीं रहता
कहने की ज़रूरत नहीं
सबसे ज़्यादा ग़लतियाँ
रूसी में
विदेशी ही करते हैं