Last modified on 20 जून 2017, at 01:20

भाषा / अनिल गंगल

जिनके लिए दुनिया के क्रिया-व्यापार
सिर्फ़ भाषा थे
और तमाम विचार, दर्शन और सिद्धान्त
भाषा की विविध भंगिमाओं के सिवा कुछ न थे

अन्ततः भाषा सुविधा ही साबित हुई उनके लिए
आपदा के वक़्त
वही पाए गए भाषा के बंकरों में छिपे
भाषा को ओढ़ते-बिछाते
शब्दकोशों और भाषाविज्ञान को उलटते-पलटते

भारी-भरकम शब्दों से सज्जित भाषा के आयुधों से ज़ख़्मी करते
पंक्ति में आगे खड़े लोगों को धकिया कर
वही ले भागे अन्ततः लखटकिया पुरस्कार
वही दिखाई दिए भीतरघात करते
दुश्मन के साथ गलबहियाँ डाले।