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भाषा / विजय गुप्त

धीरे-धीरे
गुम हुए
कुछ भाषिक संकेत
अर्द्धचँद्राकार बिन्दी,
अर्द्धविराम, एक हद तक
विसर्ग,
शायद हार जाएगी
खड़ी पाई भी
फुलस्टॉप से
जैसे हार रहा है
पोस्टकार्ड
इ-मेल और मोबाइल से ।

एक दिन,
बाहर हो जाएगा
हलन्त् की तरह उपेक्षित
पोस्टमैन
नहीं आएँगे
प्रेम पत्र
राजी-ख़ुशी,
हारी-बीमारी की चिट्ठी

आएँगे बस,
कम्प्यूटर और मोबाइल स्क्रीन पर
विकलांग भाषा में
कुछ तापहीन संदेश ।